शनिवार, 8 मई 2010

बुद्धिजीवी एक ब्राह्मणवादी अवधारणा है : धीरुभाई शेठ

बुद्धिजीवी एक ब्राह्मणवादी अवधारणा है : धीरुभाई शेठ

नई दिल्‍ली, 7-8 मई, 2010

बुद्धिजीवी और श्रमजीवी के रूप में लोगों का विभाजन जातिवादी फ्रेम के तहत हुआ। इस तरह बुद्धिजीवी एक ब्राह्मणवादी अवधारणा ठहरती है। यह बात सीएसडीएस के पूर्व निदेशक और वरिष्‍ठ राजनीतिक समाजशास्‍त्री धीरूभाई शेठ ने डॉ राममनोहर लोहिया के जन्‍मशताब्‍दी वर्ष के अवसर पर जेएनयू में ‘सामाजिक चुनौतियां और बुद्धिजीवियों का दायित्‍व’ विषय पर आयोजित एक विचार गोष्‍ठी में कही। उन्‍होंने कहा कि इस देश में दो सत्ताएं हैं – व्‍याख्‍या सत्ता और राजसत्ता। व्‍याख्‍या सत्ता राजसत्ता को नियंत्रित करती रही है। बुद्धिजीवी वर्ग की ताकत को ऐतिहासिक रूप में समझने की जरूरत है। साथ ही उन्‍होंने हैरानी भी जतायी कि आज के बुद्धिजीवियों की बात आम जीवन की समस्‍याओं से मेल नहीं खाती हैं, यह लोकतंत्र के लिए अच्‍छा संकेत नहीं है।
इस अवसर पर उपस्थित वरिष्‍ठ पत्रकार ओम थानवी ने शिक्षा जगत, कला, सिनेमा और प‍त्रकारिता की वर्तमान स्थिति को बडे स्‍पष्‍ट शब्‍दों में रेखांकित किया। उन्‍होंने कहा कि आज इन सभी क्षेत्रों की स्थिति बड़ी निराशाजनक है। कलाकार आज बाजार के चंगुल में फंस गया है। उसे सृजन की प्रेरणा अंदर से नहीं, बाजार से मिल रही है। कला के सबसे समर्थ माध्‍यम सिनेमा का कॉमेडी आज अभिन्‍न अंग हो गया है। विषय कोई भी हो, वह कॉमेडी के अंदाज में ही होगा। गरीबी, बलात्‍कार, भ्रष्‍टाचार आदि मजाक के विषय नहीं हैं। इस अति-व्‍यावसायिक सिनेमा में सार्थक सिनेमा खोता जा रहा है। उन्‍होंने आगे कहा कि समय के साथ पत्रकारिता की जिम्‍मेदारी बढ़नी चाहिए परंतु आज जितना पतन पत्रकारिता का हुआ है, उतना अन्‍य किसी का नहीं। भारत जैसे देश, जहां बड़ी आबादी निरक्षर है, के लिए टीवी, रेडियो वरदान बनकर आये थे परंतु आज यह मनोरंजन के साधन मात्र बनकर रह गये हैं। आजकल पत्रकारिता में वैचारिकता का लोप होता जा रहा है। मीडिया में बाजार का हस्‍तक्षेप जरूरत से ज्‍यादा बढ़ता जा रहा है। बाजार सभी चीजों का निर्धारक हो गया है।
गोष्‍ठी के अध्‍यक्ष प्रो आनंद कुमार ने कहा कि आज बुद्धिजीवियों के सामने दायित्‍वबोध का प्रश्‍न होना चाहिए। यह समय इमरजेंसी से भी ज्‍यादा खतरनाक है। वह बौद्धिक हो ही नहीं सकता जो सुरक्षा की तलाश में हो। बौद्धिक वह है जिसका आदर्श ‘सर उतारे भुईं धरे’ वाला हो। सच कहने का साहस बौद्धिक होने की पहली शर्त है।
गोष्‍ठी में कथाकार महेंद्र चौधरी के उपन्‍यास ‘पुनर्भवा’ तथा मासिक ‘सबलोग’ के ‘लोहिया विशेषांक’ का लोकार्पण भी किया गया। उपन्‍यास पर बोलते हुए डॉ मणींद्रनाथ ठाकुर ने कहा कि बुद्धिजीवियों के समाज में योगदान की कहानी है ‘पुनर्भवा’। बुद्धिजीवियों का राजसत्ता के प्रति आलोचनात्‍मक रवैया भारत की पुरानी परंपरा रही है। आज बुद्धिजीवियों का यह दायित्‍व होना चाहिए कि जाति, धर्म त्‍यागकर प्रताड़‍ित और हाशिये के लोगों के साथ खड़े हों। डॉ संतोष कुमार शुक्‍ल, सुयश सुप्रभ और गंगा सहाय मीणा के विचारोत्तेजक सवालों ने गोष्‍ठी को संवादात्‍मक रूप प्रदान किया। कार्यक्रम के अंत में ‘सबलोग’ के संपादक किशन कालजयी ने सभी को धन्‍यवाद ज्ञापित किया।
♦ जितेंद्र कुमार यादव

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