नरेश गोस्वामी
मुझे लगता है कि बिंदु न-४ से यात्रा शुरू की जाये. इसे हम समाज विज्ञानों की मौजूदा पाठ्य पुस्तकों के ऑडिट या समीक्षा के रूप में शुरू कर सकते हैं. इसके लिए हम ऐसी पुस्तकों को चुन सकते हैं जो हिंदी के जनपद में दशकों से टिकी हुई हैं तथा जिन्हें छात्रों की पहली पसंद जैसा कुछ कहा जाता रहा है. ऐसी पुस्तकों को चुनकर देखा जाये कि उनमें इस बीच क्या कुछ नया जोड़ा गया है या उनकी आधार सामग्री किन स्रोतों से ली गई है. इससे दो चीजों का पता चलेगा. एक, उनका फॉर्मेट कुंजी वाला है या उनमें उस पाठ्य सामग्री का भी कोई उपयोग किया गया है जो पिछले दो-तीन दशकों के दौरान हिंदी में मौलिक लेखन या अनुवाद के जरिये सामने आई है. दो, इससे यह भी पता लगेगा कि पाठ्य पुस्तकों के लेखक किन और किस तरह कि सामग्री को मानक मानते रहे हैं.
बाकी के सात नुक्तों में नंबर-३ (सायबर दुनिया में ज्ञान के निर्माण) को हम अंत में पकडेंगे. पहले आधार वक्तव्य स्पष्ट हो जाये और उसके लिए आपकी टिपण्णी एकदम सटीक है.
नरेश
naresh goswami
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