सोमवार, 14 दिसंबर 2009

सामाजिक विज्ञान भारतीय भाषाओं में पढ़ा और पढ़ाया जाए

मैं आप सभी को बधाई देना चाहता हूँ कि आपने इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर वैचारिक पहलकदमी की ताकत दिखाई है। देशी भाषाओं में समाज विज्ञान का सपना साकार हो सके इस विचार को संजोए ही मैंने अपने विश्वविद्यालय के दिनों को बिताया। यद्यपि मैं अब विदेश में बस गया हूँ लेकिन मैं किसी भी रूप में आपके इस अभियान में शिरकत कर सकूँ तो अपने आपको सौभाग्यशाली समझूंगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनौतियाँ असीम हैं और शायद साधन सीमित। फिर भी मैं यह शिद्दत से मानता हूँ कि देसी भाषाओं में सामाजिक विज्ञान की धारणा को जब तक वैचारिक विमर्श के द्वारा प्रमुखता नहीं दी जाएगी तब तक किसी भी तरह का बौद्धिक विमर्श अधूरा ही माना
जाएगा। मैं बौद्धिकता के इस अधूरेपन को बिताते हुए अपने जीवन के 40 वर्षों को काट चुका हूँ और नहीं चाहता कि हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ भी सिर्फ़ इसलिए अंग्रेज़ी को अपनाएं क्योंकि उनकी अपनी भाषाओं में सामग्री मौजूद नहीं है। यह एक बड़ा धोखा है जो भारतीय एक लंबे समय से झेल रहे हैं। लिहाज़ा, आपका अभियान सफल हो और सामाजिक विज्ञान भारतीय भाषाओं में पढ़ा और पढ़ाया जाए ऐसी मैं कामना करता हूं।

आगे की गतिविधियों की जानकारी भेज सकें तो आपका आभारी रहूँगा।

ऐश्वर्ज, कैम्ब्रिज।
ak403@cam.ac.uk
बुधवार 07 अक्टूबर 2009 18:17


सराय-सी एस डी एस के साथी रविकांत (ravikant@sarai.net ) ने समाज विज्ञान ब्लॉग की सूचना 'दीवान' पर फैला दी. वहीँ आया एक सन्देश,
पं


दीवान सूची पर ऐसे कई लोग हैं जिनकी दिलचस्पी भारतीय भाषाओं में समाज विज्ञान रचने में है. दीवान पर यह टिप्पणी भेजने वाले भाई ऐश्वर्ज कुमार ने दिल्ली विवि के इतिहास विभाग से हिन्दी में ही एम फ़िल किया था और अब केम्ब्रिज से भाषाई मसलों पर इतिहास में पीएचडी कर रहे हैं.
रविकान्त

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