रविवार, 13 दिसंबर 2009

इस पहल में मुझे साथ ही समझें : कुमार प्रशांत

प्रिय भाई,
आपकी पहल की जानकारी मिली. पहल अच्छी ही नहीं, जरूरी भी है. बस, इतना कहूंगा कि इसका शीर्षक बदल दीजिए. वह तो पुरानी, जड़ मानसिकता का ही द्योतक है ! देशी भाषा मतलब क्या ? अंग्रेजी दुनिया भर की भाषा है और इस देश की भी भाषा है, इसलिए बाकी सारी भाषाएं देशी भाषा हो गईं? ऐसा हम स्वीकार करते हैं तभी अपनी भाषाओं की दोयम स्थिति स्वीकार करते हैं. इसलिए कहना चाहिए - अपनी भाषा में अपना समाज ! मुझे इसके साथ विज्ञान शब्द जोड़ने की जरूरत भी नहीं लगती है क्योंकि समाज के कई आयामों में से एक आयाम विज्ञान का भी है; याकि इससे भी बड़े अर्थ में कहूं तो समाज का हर कुछ विज्ञान ही है. जो लोग विज्ञान का हौव्वा खड़ा करते हैं और ऐसा बताने की कोशिश करते हैं कि विज्ञान कुछ ऐसी चीज है जो हमारे पास है और हम वह समाज को देंगे, वे ऐसी मनोभूमिका में सोचते हैं. इसलिए मुझे इतना लिखना जरूरी लगा.
इस पहल में मेरी कोई भी जरूरत हो तो मुझे साथ ही समझें.
कुमार प्रशांत
kumar.prashant@acm.co.in
Sep 23, 2009 at 9:45 AM

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